ऊँचे से पर्वत मैया, बण्यो ये दीवालो भवानी,
बण्यो ये दीवालो हे, जोत जगे है मैया नौखण्डी हे ।
भवानी जोत जगे है मैया नौखण्डी
सा लज्जा राखो महाराणी लज्जा राखो भगत रा बाना
की सा परतंग्या राख थारा भगता की।
थारा औरण में मैया, बाग लगायो भवानी बाग……
सौरम आवे है दाड्यूं दाखां की सा लज्जा राखो…।।1।।
थारा औरण में मैया, नौपत बाजे भवानी नौपत……
डमरू बाजे ये मैया, सुलतानी सा लज्जा राखो…।।2।।
थारा औरण में मैया, सिंह धडुके- भवानी सिंह…..
आप हुई ये मैया, असवारी सा लज्जा राखो… ।। 3 ।।
कैरव पांडव ने मैया, तूं ही है लड़ाया भवानी, तूं ही है….
द्रोपदी ने करदी माँ पराणी आप हुई ये मैया, रखवाली सा लज्जा राखो…।।4।।
राम रावण नै मैया, तूं ही है लड़ाया भवानी, तूं ही है….
आप हुई ये मैया, निरवाली सा लज्जा राखो… 115 11
साधां री मंडली में मैया, गौरख बोल्या भवानी, गौरख….
तूं ही हे बच्चा की मैया, रखवाली सा लज्जा राखो… 116 11
श्री मन्नारायण नारायण नारायण लक्ष्मी नारायण नारायण नारायण।
श्री विष्णुपुराण भागित गीता िाल्मीकजी की रामायण श्री | 1|
चाररह िेद पुराण अण्टदश िेदव्यासजी की पारायण श्री। 2|
शशि सनकादद आदद ब्रह्माददक, सुशमर सुशमर भये पारायण श्री| 3|
श्यामल गात पीताम्बर सोहे, विप्र चरण उर धारायण श्री। 4।
नारायण के चरण कमल पर, कोदटकाम छवििाराण श्री। 5।
शंख चक्र गदा पदम विराजे, गल कौस्तुभ मणण धारायण श्री। 6|
खम्भ फाड़ दहरणाकुश मारे, भक्त प्रहलाद उबारायण श्री। 7|
कश्यप ऋवि से िामन होके, दण्डकमण्डलुधारायण श्री। 8|
बशल सेयाच तीनपद पथ्ृिी, रूप त्रिविक्रम धारायण श्री। 9|
गज और ग्राह लड़ेजल भीतर, लड़त लड़त गज हारायण श्री| 10|
जो भर सुंड रही जल बादहर, तब हररनाम उच्चारण श्री। 11।
गज की टेर सुनी रघुनंदन, आप पधारे नारायण श्री। 12|
जल डुबत गजराज उबारे, श्री चक्र सुदशनश धारायण। 13|
सरयूके तीर अयोध्या नगरी, श्री रामचन्र अितारायण श्री 14|
क्रीट मुकुट मकराकृत कुण्डल, अद्भुत शोभा धारायण श्री। 15|
सरयूके नीरे तीरे तुरंग निाब, धनुििाण कर धारायण श्री। 16|
कोमल गात पीताम्बर सोहे, उर िैजयन्ती धारायण श्री। 17|
बक्सर जाय ताड़का मारी, मुनन यज्ञ ककये पारायण श्री। 18|
स्पशश चरण शशला भई सुन्दर, बैठ विमान भई पारायण भी। 19|
जाय जनकपुर धनुि उठायो,राजा जनक प्रण सारायण श्री। 20|
जनक स्ियम्बर पािन कीन्हों, िरमाला हरर नारायण श्री। 21|
सीता ब्याह राम घर आये, घर घर मंगलाचारायण श्री। 22|
मात वपता की आज्ञा पाई, चचिकूट पगधारायण श्री। 23।
दण्डकिन प्रभुपािन कीन्हों, ऋवि मुनन िास ननिारायणा श्री। 24|
सागर ऊपर शसला तराई, कवप दल पार उतारािण श्री । 25।
रािण के दश मुस्तक छेदे, राज विभीिण पारायण श्री | 26|
रामरूप होय रािण मारयो, भक्त विभीिण तारायण श्री । 27।
यमुना के नीर तीरे मथुरा नगरी, श्री कृष्ण चन्र अितारायण श्री। 28|
मथुरा में हरर जन्म शलयो है, गोकुल में पग धारायण श्री । 29|
बालपने हरर पतूना मारी, जननी की गनत पारायण श्री । 30।
बालपने मुखमदटया खाई, तीन लोक दशाशरायण । 31।
माता यशोदा ऊँ खाल बाँधी, यमला अजुनश तारायण श्री | 32|
मोर मुकुट, पीतांबर सोहे, श्रिण कंुडल धारायण श्री | 33|
यमुना के नीरे तीरे धेनुचरािे, मुख पर मुरली धारायण श्री | 34|
पैठ पाताल नाग को नाथ्यो, फण कण नत्ृय करारायण भी | 35|
िन्ृदािन में रास रच्यो है, सहस्ि गोपी एक नारायण श्री | 36|
इन्र कोप जब ककयो ब्रज ऊपर, बरसत मसूल धारायण श्री | 37|
बूडत ही ब्रज राखशलयो है, नख पर चगररिर धारायण श्री। | 38|
माता वपता की बन्द छुडाई, मामा कं स ने मारायण श्री | 39|
कृष्णरूप होय कं स पछाड्यो, उग्रसेन कुल तारायण श्री । 40।
उग्रसेन को राज नतलक ददयो द्िार िेत कर धारायण श्री | 41|
रप ुद सुता को चीर बढायो, दष्ुट दश ुासन हारायण श्री । 42।
दय ुोधन के मेिा त्यागे, शाक त्रबदरुघर पारायण श्री | 43|
शबरी के बेर सुदामा के तन्दल ुरूचच रुचच भोग लगारायण श्री| 44|
अजाशमल सुत्त हेतुपुकारे, नाम लेत नारायण श्री | 45|
अजाशमल गजगणणका तारी, ऐसे पनतत उधारायण श्री । 46।
जो नारायण का नाम लेत है, पाप होत सब छारायण श्री । 47।
जो कोई भक्क्त करे माधि की, मात वपता कुल धारायण श्री | 48|
कूमश होय ब्रह्मा बर दीनी, श्रीरंग शॉप को पारायण श्री । 49|
श्री शेिाचल पर आप विराजे, श्री बेंकटेश अितारायण. श्री| 50|
जडचेतन का अंतरयामी, अणखल जगत दहत कारायण. श्री| 51|
संस्ट पुि ब्रम्हाको शसरजे, िेद मंि उच्चारण. श्री| 52|
हयग्रीि होय िेद कफर लाये, ब्रह्मा कष्ट ननिारण. श्री| 53|
दैत्य को मार भूशम को लाये, िराह रूप को धारायण. श्री| 54|
परमपद छोड़ क्षिराननचध आये, सुर नर-मुनन दहत-कारायण, श्री | 55|
जो को मथकर रत्न ननकाले. देिन कारज सारायण, श्री| 56|
बदरकाश्रम में ध्यान लगाये, अष्टािर उच्चारण, श्री । 57|
श्री शेिाचल पर खड़े दरश दे, मनिांनछत फल पारायण, श्री| 58|
रांची में िरदराज विराजे, बम्हा कारज सरायण श्री| 59|
श्री ििस्मश्री लक्ष्मी विराजे, जय जय श्री हररनारायण. श्री| 60|
िेद शास्ि भारत रामायण, सब गाित श्री नारायण, श्री| 61|
कशलयुग में प्रभुप्रगट भये है, रामानुजन अितारायण. श्री| 62|
पुष्कर में प्रभुआप विराजे ,श्री िेंकटेश प्रभुनारायण. श्री| 63|
महाभारत में चरम मंि की जगत हेतुउच्चारण. श्री| 64|
ददव्य गुणों का अन्त नहीं है, शेि पािे नहीं पारायण. श्री| 65|
जहाँ-जहाँभीड़ पड़ी भक्तों में, तहाँ-तहाँकारज सारायण, श्री| 66|
ननत्य प्रेम से गान सुनािे, कुटुम्ब सदहत उदासी, श्री| 67|
श्री श्री चरणों का दास गाय यश, जगत हेतुउद्धारायण. श्री| 68|
माधिदास आस रघुिर की, भिसागर भये पारायण श्री। 69|
श्री शेिाचल पर आप विराजे, श्री िेंकटेश अितारायण श्री। 70|
जय अम्बे गौरी,
मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी।
मांग सिंदूर विराजत,
टीको मृगमद को,
उज्ज्वल से दोउ नैना,
चंद्रवदन नीको॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
कनक समान कलेवर,
रक्ताम्बर राजै,
रक्तपुष्प गल माला,
कंठन पर साजै॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
केहरि वाहन राजत,
खड्ग खप्पर धारी,
सुर–नर–मुनिजन सेवत,
तिनके दुखहारी॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
कानन कुण्डल शोभित,
नासाग्रे मोती,
कोटिक चंद्र दिवाकर,
सम राजत ज्योती॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
शुंभ–निशुंभ बिदारे,
महिषासुर घाती,
धूम्र विलोचन नैना,
निशदिन मदमाती॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
चण्ड–मुण्ड संहारे,
शोणित बीज हरे,
मधु–कैटभ दोउ मारे,
सुर भयहीन करे॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
ब्रह्माणी, रूद्राणी,
तुम कमला रानी,
आगम निगम बखानी,
तुम शिव पटरानी॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत,
नृत्य करत भैरों,
बाजत ताल मृदंगा,
अरू बाजत डमरू॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
तुम ही जग की माता,
तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुख हरता,
सुख संपति करता॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
भुजा चार अति शोभित,
खडग खप्पर धारी,
मनवांछित फल पावत,
सेवत नर नारी॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती,
श्रीमालकेतु में राजत,
कोटि रतन ज्योती॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
श्री अंबेजी की आरति,
जो कोइ नर गावे,
कहत शिवानंद स्वामी,
सुख–संपति पावे॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
जय अम्बे गौरी,
मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी।
जय अम्बे गौरी,
मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी।
मांग सिंदूर विराजत,
टीको मृगमद को,
उज्ज्वल से दोउ नैना,
चंद्रवदन नीको॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
कनक समान कलेवर,
रक्ताम्बर राजै,
रक्तपुष्प गल माला,
कंठन पर साजै॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
केहरि वाहन राजत,
खड्ग खप्पर धारी,
सुर–नर–मुनिजन सेवत,
तिनके दुखहारी॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
कानन कुण्डल शोभित,
नासाग्रे मोती,
कोटिक चंद्र दिवाकर,
सम राजत ज्योती॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
शुंभ–निशुंभ बिदारे,
महिषासुर घाती,
धूम्र विलोचन नैना,
निशदिन मदमाती॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
चण्ड–मुण्ड संहारे,
शोणित बीज हरे,
मधु–कैटभ दोउ मारे,
सुर भयहीन करे॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
ब्रह्माणी, रूद्राणी,
तुम कमला रानी,
आगम निगम बखानी,
तुम शिव पटरानी॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत,
नृत्य करत भैरों,
बाजत ताल मृदंगा,
अरू बाजत डमरू॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
तुम ही जग की माता,
तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुख हरता,
सुख संपति करता॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
भुजा चार अति शोभित,
खडग खप्पर धारी,
मनवांछित फल पावत,
सेवत नर नारी॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती,
श्रीमालकेतु में राजत,
कोटि रतन ज्योती॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
श्री अंबेजी की आरति,
जो कोइ नर गावे,
कहत शिवानंद स्वामी,
सुख–संपति पावे॥
॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥
जय अम्बे गौरी,
मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी।
थाने बिनती करूं, मैं बारम्बार मर्याद भवानी अरज सुनो
बीकाजी ने वचन दीयो हे मैया, गढ़ के नींव लगाय ।
देशनोक में बण्यो दिवालो, शोभा बरणी न जाय ।।1 ॥
शैखाजी मुल्तान कैद में, घर बाई को ब्याव ।
होय कांवली पकड़ पंजे में, फेरों के पहली पहुंचाय ॥ 2 ॥
गंगा सिंहजी री रही मदद में, अंगरेजा रे मायं ।
अंगरेजा एक कपट रच्यो है, सूतोड़ो सिंह जगाय ॥3 ॥
गरज सिंहड़ो चल्यो भूप पर, हाथल रोकी आय ।
सनमुख होकर परच्यो दीनो, सिंहड़ा रो मान बढ़ाय ॥ 14 ॥
गांव शिराणो जात बिरामण, दलुराम कथ गाय ।
शुभ सेब सां म्हारो शेहर बिकाणो, देशाणारी मोटी माय ॥15॥
Orandham a temple situated at Barwala, rajasthan, india. It is 468 year old .
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